डॉ कमल ने कहा: तीनो रोगी असक्षम परिवार से हैं व नसों के द्वारा परेनट्रल पोषण का खर्च भी वहन नही कर सकते हैं| आंत की लम्बाई मात्र 20 व 60 सेंटीमीटर होने पर भी रोगी कम खर्च में घर के खाने से स्वस्थ जीवनयापन कर रहे हैं जो अपने आप में किसी उपलब्धि से कम नही|
गीतांजली हॉस्पिटल सर्वसुविधायुक्त हॉस्पिटल है यहाँ आने वाले रोगियों की जटिल से जटिल बिमारियों का नवीनतम तकनीकों द्वारा एक्सपर्ट्स की टीम निरंतर इलाज कर रही है|गीतांजली हॉस्पिटल के जी.आई सर्जरी विभाग के एच.ओ.डी डॉ कमल किशोर बिश्नोई, डॉ आकांशा सोनी व टीम के द्वारा तीन बहुत ही चुनौतीपूर्ण व अचम्भित कर देने वाले केस अपने आप में किसी चमत्कार से कम नही|
आइये सबसे पहले जाने छोटी आंत के बारे में:
छोटी आंत क्या है?
छोटी आंत एक पाचन तंत्रिका है जो पेट के बाद में होता है और खाने के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
छोटी आंत कितनी लंबी होती है?
छोटी आंत की लंबाई लगभग 5-7 मीटर होती है।
जीवन- यापन हेतु कम से कम छोटी आंत की कितनी लम्बाई आवश्यक है?
कम से कम 1 मीटर ( 100 सेंटीमीटर)
छोटी आंत में कौन-कौन से अंग होते हैं?
छोटी आंत में तीन अंग होते हैं: डुआडेनम (Duodenum), जीजुनम (Jejunum), और इलियम (Ileum)।
छोटी आंत का क्या कार्य है?
छोटी आंत अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों का पाचन करती है। इसमें पोषक तत्वों को शरीर के लिए उपयुक्त बनाया जाता है और उनका उपभोग होता है।
छोटी आंत के विकार क्या हो सकते हैं?
छोटी आंत के कुछ सामान्य विकार शामिल होते हैं जैसे गैस, पेट दर्द, पेट में सूजन, या पेट की समस्याएं। इनके अलावा, छोटी आंत की संक्रमण, समस्याएं भी हो सकती हैं।
छोटी आंत के स्वस्थ पालन कैसे करें?
छोटी आंत के स्वस्थ पालन के लिए आपको पोषक तत्वों से भरपूर आहार खाना चाहिए, पानी पीना चाहिए, और समय पर खाना खाना चाहिए। अतिरिक्त गैस और पेट दर्द से बचने के लिए आपको स्वस्थ आहार और अधिक पानी पीने का पालन करना चाहिए।
यह विधित है कि एक आम आदमी को जीवन यापन करने के लिए कम से कम 100 सेंटीमीटर छोटी आंत का होना ज़रूरी है| गीतांजली हॉस्पिटल के जी.आई. सर्जरी विभाग की टीम द्वारा तीन रोगियों जिनकी छोटी आंत की लम्बाई मात्र 60 व 20 सेंटीमीटर है का अथक प्रयासों से सफल ऑपरेशन करके स्वस्थ जीवन प्रदान किया गया| सभी रोगी अभी अपना आराम से जीवनयापन कर रहे हैं|
आइये अब जाने पोषण कितने प्रकार के व कौनसे होते हैं
पोषण के दो विभिन्न तरीके हैं: पेय पोषण (पेयजन्य या पैरेंटरल) और मुख से (मुख के माध्यम से)
पेय पोषण (Parenteral Nutrition): यह आमतौर पर उस समय प्रयोग किया जाता है जब कोई व्यक्ति सामान्य रूप से भोजन करने या पचाने में समर्थ नहीं होता, जैसे कि गंभीर बीमारी, पाचनतंत्र की विकृतियाँ, या कुछ सर्जरी के बाद। पेय पोषण सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, जैसे कि कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा, विटामिन, और खनिज जैसे पोषण को नसों के द्वारा रोगी को दिया जाता है|
मुखद्वारा पोषण (Oral Nutrition): यह सबसे सामान्य तरीका है जिससे लोग पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं, मुख के माध्यम से खाने-पीने से। भोजन और पेय से पोषक तत्वों को पाचनतंत्र में बिखराया जाता है, अंततः इंटेस्टाइन के माध्यम से रक्तसंचार में अवशोषित किया जाता है, और फिर शरीर के विभिन्न भागों में वितरित किया जाता है, ताकि विभिन्न शारीरिक कार्यों का समर्थन किया जा सके। मुखद्वारा पोषण को संपूर्ण स्वास्थ्य और कुशलता के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
विस्तृत जाकारी: डॉ कमल ने बताया कि प्रायः 100- 60 सेंटीमीटर छोटी आंत वाले को जीवित रहने के लिए नसों के द्वारा परेनट्रल पोषण देना पड़ता है जिसकी प्रतिदिन की कीमत लगभग 4000- 5000/- रूपये है| हमारे रोगी जिनकी सिर्फ 20 एवं 60 सेंटीमीटर छोटी आंत बची है उनको मुंह के द्वारा ही संशोधित पोषण दिया जा रहा है जोकि आराम से पच सके| और खाना जिस प्रकार से एक आम आदमी के लिए कारगर होता है उसी प्रकार के इनके खाने में सभी पोषण तत्व को शामिल किया गया, जिसे रोगी ले रहे हैं और उनको स्वस्थ लाभ भी मिल रहा है और साथ ही वजन भी बढ़ा है| इलाज के दौरान प्रोटोकॉल के अनुसार आंत की स्पीड को कम कर दिया जाता है और रोगी को प्री-डाईजेस्टेड खाना दिया जाता है|
46 वर्षीय उदयपुर निवासी श्री मुन्ना खान (छोटी आंत मात्र 60 सेंटीमीटर शेष), 63 वर्षीय भीलवाड़ा निवासी श्री नाथुलाल (छोटी आंत मात्र 60 सेंटीमीटर शेष), 34 वर्षीय मंदसौर निवासी श्रीमती शबाना (छोटी आंत मात्र 20 सेंटीमीटर शेष) ये सभी रोगी हताश हो चुके थे और इनकी छोटी आँतों में गेंग्रीन इतना फ़ैल चुका था कि बचना नामुमकिन था| इन्होने कई हॉस्पिटल में भी दिखाया परन्तु इलाज के लिए मना कर दिया गया| रोगी जब गीतांजली हॉस्पिटल आये तब जी.आई. सर्जरी विभाग की टीम द्वारा रोगियों को आश्वासन दिया गया व इन सभी गंभीर रोगियों के सफल ऑपरेशन किये गए| रोगियों का पोस्ट ऑपरेटिव मैनेजमेंट स्टैण्डर्ड प्रोटोकॉल का उपयोग करते इलाज किया गया| आज सभी रोगी स्वस्थ है अपना जीवनयापन कर रहे हैं|
गीतांजली हॉस्पिटल के सीओओ श्री ऋषि कपूर ने भी सम्पूर्ण जी.आई सर्जरी विभाग की प्रशंसा की और साथ ही भविष्य में इस तरह के गंभीर रोगियों को स्वस्थ जीवन देने की बात की जोकि अँधेरे में उम्मीद देने जैसा है|
गीतांजली हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी तथा जी. आई. सर्जरी से संबंधित सभी एडवांस त कनीके व संसाधन एंडोस्कोपी यूनिट में उपलब्ध हैं जिससे जटिल से जटिल समस्याओं का नि वारण निरंतर रूप से किया जा रहा है।
गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल पिछले सतत् 17 वर्षों से एक ही छत के नीचे सभी विश्वस्तरीय सेवाएं दे रहा है और चिकित्सा क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता आया हैगीतां जली हॉस्पिटल में कार्यरत डॉक्टर्स व स्टाफ गीतांजली हॉस्पिटल में आने प्रत्येक रोगी के इलाज हेतु सदेव तत्पर है|
कई बड़े नामी हॉस्पिटल द्वारा मना किये जाने के बाद गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड होस्पिटल, उदयपुर में बगेर चीरे के दुर्लभटीएमवीआर प्रोसीज़र से हुआ सफल जीवन
गीतांजलीमेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर में दिल की गंभीर बीमारी से झूझ रही जैसलमेर निवासी 64 वर्षीय रोगी का गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के कार्डियक सेंटर ने अत्याधुनिक चिकित्सातकनीकटीएमवीआर (ट्रांसकैथेटर माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट) से हुए सफल उपचार कर स्वस्थ जीवन प्रदान किया गया। यहाँ की कुशल ह्रदय रोग विशेषज्ञों की टीम में डॉ. रमेशपटेल, डॉ. दिलीपजैन, डॉ. जयभारत,डॉगौरव मित्तल, ह्रदय शल्य चिकित्सक डॉ संजय गाँधी, डॉ गुरप्रीत सिंह, डॉ अनुभव बंसल, डॉ आयुष रिछारिया, एनेस्थेसियोलोजिस्ट डॉ अनिल भीमाल व टीमद्वारारोगी का इलाज किया गया|
विस्तृतजानकारी: 64वर्षीयमहिला रोगी जिनको डायबिटीज की शिकायत है कि2016 में अहमदाबाद में एंजियोप्लास्टी तथा माइट्रल वाल्व रिपेयर सर्जरी हुई तब रोगी लगभग एक माह तक कमजोर हार्ट फंक्शन के कारण आईसीयू में भर्ती रही|पिछले छः माह से रोगी के वाल्व में लीकेज की शिकायत थी जिस कारण सांस फूलना, आधी रात में सोते हुए भी सांस का फूल जाना जैसे लक्षण थे| ऐसी स्थिति में रोगी को गीतांजली हॉस्पिटल द्वारा आयोजित कैंप में लाया गया, डॉ जय भारत द्वारा रोगी को देखा गयाऔर हॉस्पिटल आने की सलाह दी| गीतांजली मेडिकलकॉलेज एंड हॉस्पिटल आने पर रोगी की पूर्णतया जांच की गयी जिसमें पता चला की जिस वाल्व का ऑपरेशन अहमदाबाद में 2016 में हुआ था वह पुनः लीक हो रहा था| रोगी के इस वाल्व को पुनः ठीक करना आवश्यक था इसके लिए दो विकल्प थे ओपन ऑपरेशन या टीएमवीआर (ट्रांसकैथेटर माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट) जोकि बिना चीरे के किया जाता है|
डॉ रमेश पटेल ने बताया की चूँकि रोगी का पहले भी 2016 में हाई रिस्क ऑपरेशन किया जा चुका था और कई बार हार्ट फेलियर के कारण रोगी हॉस्पिटल में भर्ती हो चुकी थीइसलिएपुनः ऑपरेशन करने में रिस्क भी था| रोगी के परिवारजनों ने ऑपरेशन के अलावा डॉक्टर्स से विकल्प पूछातब टीएमवीआर की सलाह दी गयी और रोगी के परिवारजनों को विस्तार में इसके बारे में जानकारी दी गयी|
डॉ संजय गाँधी ने बताया कि जब परिजन चीरे वाला ऑपरेशन नहीं चाहते थे तब उनको टीएमवीआर द्वारा इलाज संभव है| इस ऑपरेशन के दौरान पूरी सर्जिकल टीम हार्ट टीम की तरह ऑपरेशन में शामिल रही|
डॉ जय भारत ने बताया की सबसे बड़ी समस्या यह थी की जिस रिंग से पहले वाल्व को ठीक किया गया वह बहुत रिजिड (कठोर) था| जिस कारण से टीएमवीआर करना बहुत मुश्किल होता है|इस तरह के प्रोसीज़र को सिर्फ क्वाटरनरीकेयर सेंटर्स पर ही करना संभव है| गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड होस्पिटल की कार्डियक साइंसेज की टीम द्वारा इस तरह के दुर्लभ प्रोसीज़र को अंजाम देने के लिए रोगी के रिजिड रिंग को पहले बलून द्वाराखोला गया और इसकी सहायता से रिंग को वाल्व के अनुसार काफी हद तक गोल आकार दिया गया , इसके पश्चात वाल्व को प्रत्यारोपित किया गया औरवाल्वने भी रिंग की तरह आकृति ले ली| यह टीएमवीआर तभी संभव है जब रोगी के वाल्व या रिंग पहले से लगा हो| इसका सबसे बड़ा फायेदा यह है की रोगी के किसी तरह का की चीरा नहीं दिया गया|
टीएमवीआर प्रोसीज़र सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुत दुर्लभ हैं क्यूंकि यह बहुत जटिल है इसलिएहार्ट टीम द्वाराबड़ेक्वाटरनरीकेयर सेंटर पर ही संभव है क्यूंकि इसके लिए बड़ी एवं अनुभवी टीम का होना आवश्यक है| इस रोगी को भी कई बड़े हॉस्पिटल में दिखाया गया था परन्तु इलाज के लिए भर्ती नहीं किया गया| गीतांजलीहॉस्पिटल में इस तरह का सफल इलाज होना सम्पूर्ण संभागही नही बल्कि राजस्थान के लिए बहुतगर्व की बात है|
गीतांजली हॉस्पिटल एक क्वाटरनरी के यरमल्टी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल है|यहाँ के ह्रदय रोग में सभी एडवांस तकनी के व संसाधन उपलब्ध हैं जिससे जटिल सेजटिल समस्याओं का निवारण निरंतर रूप से किया जा रहा है।
गीतांजली हॉस्पिटल पिछले 17 वर्षों से सतत रूप से हर प्रकार की उत्कृष्ट एवं विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है एवंज रूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं देता आया है।
गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर में कोरोना के सभी नियमों का पालन करते हुए सुचारू रूप से रोगियों का इलाज किया जा रहा है| गीतांजली कैंसर सेंटर के सर्जन डॉ. आशीष जाखेटिया एवं डॉ. अरुण पांडेय, मेडिकल ओन्कोलोजिस्ट डॉ. अंकित अग्रवाल, ह्रदय रोग विभाग के सर्जन डॉ. संजय गाँधी, एनेस्थेसिस्ट डॉ. नवीन पाटीदार, आई.सी.यू इंचार्ज डॉ. संजय पालीवाल व टीम, ओ.टी. इंचार्ज अविनाश व टीम ने 36 वर्षीय रोगी के घातक मेसोथेलियोमा का सफल ऑपरेशन कर रोगी को नया जीवन प्रदान किया। क्यों था मसला बहुत संजीदा? प्रतापगढ़ निवासी 36 वर्षीय रोगी ने बताया कि लम्बे समय से उसे सीने में दर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ की शिकायत चल रही थी, ऐसे में स्थानीय डॉक्टर ने जाँच कर फेफड़े में पानी भरे होने की पुष्टि हुई, जब स्थानीय डॉक्टर ने रोगी का पानी निकला तो देखा की पानी का रंग लाल था, डॉक्टर ने रोगी को सर्व चिकित्सा सुविधाओं से लेस गीतांजली हॉस्पिटल जाने की सलाह दी| घातक मेसोथेलियोमा फेफेड़े का कैंसर नहीं बल्कि ये फेफड़ों के आस पास की दो परतें जिसे प्ल्युरा कहते हैं में होता है, यह कैंसर फेफड़े को पूरी तरह से फंसा देता है| डॉ. आशीष ने बताया कि जब रोगी गीतांजली कैंसर सेंटर आया तब उसके प्ल्युरा में पूरी तरह से पानी भरा हुआ था जिसे खाली करने के बाद जाँच में मेसोथेलियोमा की पुष्टि हुई| मेसोथेलियोमा का मुख्य कारण प्रायः एस्बेस्टोस (खनिज फाइबर की धूल सांस द्वारा स्थाई रूप से शरीर में फंस जाना) एवं धूम्रपान पाया जाता है| प्रायः इस बीमारी से ग्रसित रोगियों को बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है क्यूंकि यह बीमारी बहुत ही उत्तेजित होती है एवं इसके जयादातर रोगी ऑपरेशन को सहन कर पाने परिस्थितियों के अनुकूल नही होते| इस बीमारी का मानक इलाज कीमोथेरेपी, सर्जरी व रेडियोथेरेपी है जिसके मेल द्वारा सर्वोतम परिणाम प्राप्त किये जाते हैं| डॉ. आशीष ने यह भी बताया कि दुर्भाग्यवश इस बीमारी से ग्रसित रोगी बहुत ही बुरी स्तिथि में आते हैं जिसमे कि ऑपरेशन की सम्भावना नही होती ऐसे में रोगी को पेलिएटिव कीमोथेरेपी दी जाती है परन्तु जब कोई रोगी उचित स्तिथि में आता है ऐसे में ऑपरेशन किया जाता है जैसा कि इस रोगी में देखने को मिला, रोगी को सर्वप्रथम मेडिकल ओन्कोलोजिस्ट डॉ. अंकित अग्रवाल द्वारा कीमोथेरपी के 3 साइकिल दिए गये| कीमोथेरपी द्वारा प्ल्युरा में उपस्तिथ पानी जब पूरी तरह से खत्म हो गया, रोगी की स्तिथि में सुधार को देखते हुए रोगी की ई.पी.पी (एक्स्ट्रा प्ल्यूरल न्यूमोनेक्टोमी) की योजना बनायी गई, न्यूमोनेक्टोमी घातक मेसोथेलियोमा के लिए एक शल्य चिकित्सा उपचार है। इसमें फेफड़े को हटाना, डायाफ्राम का एक हिस्सा, फेफड़ों और दिल की परतें (पार्श्व प्लूरा और पेरिकार्डियम) शामिल हैं। सर्जरी के दौरान ह्रदय की मुख्य नसे जिसे पेरिकार्डियम कहते है उसे भी बहुत सावधानीपूर्वक हटाया जाता है, इसके कार्डियक सर्जन डॉ. संजय गाँधी व टीम द्वारा हटाया गया| पेरिकार्डियम व डायफ्राम को जो क्षति हुई उसके लिए मेश (कृत्रिम सतह) को पुनः नया बनाया गया ऐसा ना करने पर दिल बाहर भी निकल सकता है| डॉ. अरुण ने बताया कि रोगी इस तरह के गंभीर ऑपरेशन को बर्दाश्त कर सकेगा या नही इसके लिए रेस्पिरेटरी विभाग द्वारा ब्रोंकोस्कोपी (फेफड़ों की जाँच), पीएफटी यानी पल्मोनरी फंक्शन टैस्ट, 2 डी इको की जांचे की गयी व जाँच की योग्यता के अनुसार ऑपरेशन का निर्णय लिया गया| रोगी का 10 घंटे लगभग चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन चला, इसके अंतर्गत रोगी का दाहिना फेफड़ा व प्ल्युरा को पूरी तरह से बाहर निकाल दिया गया| यह ऑपरेशन व्यापक जटिलताओं से भरा हुआ था, ऐसे रोगियों को हार्ट अटैक आने की या अन्य किसी जटिलता की संभावना भी बनी रहती है| ऑपरेशन के पश्चात् रोगी को किसी प्रकार का दर्द ना हो इसके लिए रोगी को एपीड्यूरल एनेस्थिसिया डॉ. नवीन पाटीदार द्वारा व आई.सी.यू इंचार्ज डॉ. संजय पालीवाल व टीम द्वारा रोगी की ख़ास ध्यान रखा गया| चूँकि ऑपरेशन के पश्चात् रोगी को एक फेफड़े पर अपना जीवनयापन करना पड़ता है इसलिए यह ऑपरेशन बहुत की चुनिन्दा रोगीयों का किया जाता है| जी.एम.सी.एच सी.ई.ओ. प्रतीम तम्बोली ने बताया कि उक्त रोगी का सम्पूर्ण उपचार राज्य सरकार की महत्ती योजना आयुष्मान भारत-महात्मा गांधी राजस्थान स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत निःशुल्क हुआ है| इस तरह के ऑपरेशन के लिए बहुत ही उच्च उन्नत केंद्र की आवयशकता पड़ती है क्योंकि इस रोगी को मेडिकल ऑन्कोलॉजी, सर्जरी, सीटीवीएस, व्यापक आईसीयू, मल्टीमोडिलिटी सपोर्ट की आवयशकता थी| गीतांजली मेडिसिटी पिछले13 वर्षों से सतत् रूप से मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में परिपक्व होकर चुर्मुखी उत्कृष्ट चिकित्सा सेंटर बन चुका है|
गीतांजली कैंसर सेंटर में 87 वर्षीय वृद्ध की बड़ी आंत के कैंसर का सफल ऑपरेशन भीलवाड़ा के रहने वाले 87 वर्षीय रोगी ने बताया कि लगभग 2 महीने से उनको कब्ज़ी की शिकायत थी व मल में खून भी आने लगा था। ऐसे में रोगी को भीलवाड़ा के स्थानीय डॉक्टर मनीष चौधरी को दिखाया गया, उनकी सलाह से रोगी की सोनोग्राफी की गयी जिसमे बड़ी आंत में कैंसर के कुछ लक्षण सामने आये परन्तु कैंसर की पुष्टि करने हेतु रोगी का सी.टी स्कैन किया गया। सी.टी स्कैन में बड़ी आंत में लगभग 6 सेंटीमीटर के ट्यूमर का पता चला जिसके कारण रोगी को कई परेशनियों का सामना करना पड़ रहा था जैसे कि खाना खाने में दिक्कत होना, पेट फूलना, घबराहट होना इत्यादि। ऐसे में किसी भी समय आंत में छेद होने का डर था जिससे आपातकाल की स्थिति बन सकती थी। डॉ. आशीष ने बताया वृद्धावस्था में भी रोगियों के जटिल ऑपरेशन सफलतापूर्वक संभव है। ज़रूरत है सिर्फ जागरूकता की। https://www.youtube.com/watch?v=scxIAWgzKBA
Geetanjali Medical College & Hospital’ Cardiac Department’s Dr. Sanjay Gandhi with his team of Dr. Ankur Gandhi, Dr. Kalpesh Mistri and Dr. Manmohan Jindal brought back to normalcy in the life of an 82 year old man who underwent a valve replacement and a bypass surgery.
Cardiac thoracic & vascular surgeon Dr. Sanjay Gandhi said that the patient Keshav Joshi (82) was suffering from heart related problems. When he was admitted in hospital, he underwent Angiography by Dr. C.P. Purohit & Dr. Harish Sanadhya in which the arteries were blocked. This in turn was a big problem for the patient having a valve failure and blockage in arteries and it was also a big challenge for the team of doctors to perform a bypass and valve replacement surgery of an 82 year old man.
Cardiac Thoracic & vascular surgeon Dr. Sanjay Gandhi with his team of Dr. Ankur Gandhi, Dr. Kalpesh Mistri and Dr. Manmohan Jindal prepared a plan for the operation thereby successfully executing it. The operation lasted 6 hours making the patient quite happy with the treatment and disease free. Keshav Joshi (82) resident of Sagtada (Sarada) from past one-n-half years was suffering from shortness of breath, fatigue, feeling of heaviness in chest, mobility problems etc. In regard to this he was once admitted in a hospital of Udaipur but there were no sign of relief. After this he also went to Ahemdabad’s hospitals but it was all in vain. Finally he came here at Geetanjali Hospital and is healthy after the operation.
Geetanjali Hospital’s Plastic & Cosmetic Surgeon Dr. Ashutosh Soni successfully reconstructed the nose of an 18 year old girl which was defective since her childhood. The operation was assisted by Dr. Soni’s team and Dr. SS Jaitawat and Dr. Bhagwant Goyal from anesthetics.
Dr. Soni informed that Leela Meena (18), resident of Pratap Garh got her nose severed at the age of 3 after a dog chopped off her nose. After 3 operations at Geetanjali, she regained her beautiful face.
Patient Leela said that she used to tie a cloth around her nose and walk in her daily life and due to lack of sufficient amount; she walked like this for over 15 years. Where this treatment demanded Rs. 1.5-2 Lac, Geetanjali Hospital operated her for without any cost.
Now she can move around without tying any cloth around her face.
Credits : Udaipur Times
The famous Bollywood hospital line of when the doctor says, “Either the child can be saved or the mother,” saw a miraculous change at Geetanjali Medical Hospital where the panel of doctors faced the similar challenge and saved the lives of both instead.
Two different surgeries took place in which first, the baby was delivered with a caesarian operation and immediately after that, the doctors transplanted the valve of mother’s heart thereby saving the life of the mother and her child.
While addressing the media, cardiac surgeon Sanjay Gandhi said that the unique condition came in light two months back when the 7 month pregnant woman Sulachna Nagar visited the hospital & husband with complaints of weakness of heart, problems in respiratory system and swelling in body. She was kept on medicines and rest for 2-3 months post which the operation took place.
The woman was suffering from a weak valve in heart and so the doctors studied the case and miraculously performed both the operation, second in the country after one similar case dealt with in Delhi, Dr. Gandhi informed.
Three kids aged 8, 12 and 14 years were suffering from Guillain-Barre syndrome with Bulbar Palsy who were treated by HoD Dr. DevendraSareen and his team including Dr. Gaurav Ameta, Dr. Rajesh Jain and Dr. Rajiv at Geetanjali Hospital.
Dr. Sareen informed that residents of Neemach and Pratapgarh, Nikita Sharma (14), Ayush Sen (12) and Piyush Dhakad (8) were suffering from paralysis in hands and legs due to which the muscles became inactive and there were respiratory problems as well. The kids were kept under ventilator and were given antivirus injections with IV fluids so that minerals and water enters the body in adequate amount.
After 10 days they were removed from ventilator and the kids saw improvement in their speech, strength in muscles. They are given nutrients and daily exercise regime to help them walk again.
Geetanjali Hospital’ Cardiac Department’s Dr. Sanjay Gandhi with his team of Dr. Ankur Gandhi, Dr. KalpeshMistri and Dr. Manmohan Jindal brought back normalcy in the life of an 11 year old girl who underwent a valve replacement surgery.
Dr. Sanjay Gandhi informed that Pooja Meghwal (11), resident of Nimahera had problems in breathing where she suffered fast heartbeats, blackening of lips & nails and red eyes. After checkup, it was found that she lacked a valve which was treated after operation.
Likewise, another girl Sakhi Patel (3.5 years old) had a hole in her heart and compressed lung pipe which was operated successfully for her to now breathe normally again.