गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर की कार्डियक टीम ने 65 वर्षीय रोगी पूनम सिंह की अत्याधुनिक तकनीक TAVI (Trans Catheter Aortic Valve Implantation) का उपयोग कर बिना ओपन हार्ट सर्जरी के वॉल्व प्रत्यारोपित कर दक्षिणी राजस्थान के चिकित्सा क्षेत्र में दूसरी बार पुनः कीर्तिमान स्थापित किया। इस सफल इलाज करने वाली टीम में इंटरवेंशनल कार्डियोलोजिस्ट की टीम में डॉ. रमेश पटेल, डॉ. अनमोल, डॉ. कपिल भार्गव, डॉ. शलभ अग्रवाल, डॉ. डैनी मंगलानी डॉ. संतोष, डॉ. शुभम, डॉ. संदीप, डॉ. ललिता, एवं अनेस्थेसिया टीम, कार्डियक थोरेसिक वेसक्यूलर सर्जन डॉ. संजय गांधी व डॉ. अजय वर्मा, डॉ. अंकुर गांधी, इमरान और सीसीयू टीम, लोकेश और कैथ लेब टीम तथा न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट डॉ सीताराम बारठ का बखूबी योगदान रहा जिससे यह ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।
क्या था मसला: बिहार, मुजफ्फरपुर निवासी रोगी पूनम सिंह (65 वर्ष) ने बताया कि उन्हें तेज़ सांस चलना, बहुत ज्यादा पसीना होना, हर समय बेचेनी एवं लेट न पाने जैसी शिकायते रहती थी, तकलीफ बढने पर उनको गीतांजली लाया गया। ईकोकार्डियोग्राफी की जांच में हृदय का वॉल्व (एओर्टिक वॉल्व) खराब पाया गया। रोगी का एक माह पूर्व गीतांजली के सीनियर ओर्थो सर्जन डॉ. रामअवतार सैनी द्वारा नी रिप्लेसमेंट ऑपरेशन किया गया था जिस कारण पुनः ओपन हार्ट सर्जरी करना संभव नही था, इसलिए कार्डियक टीम द्वारा कम जटिल एवं बिना ओपन हार्ट सर्जरी वॉल्व रिपलेसमेंट करने का निर्णय लिया गया, एवं मात्र 45 मिनिट में डॉक्टर्स की टीम द्वारा प्रोसीजर को पूरा किया गया।
क्या होता है टावी? डॉ. पटेल ने बताया कि ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वॉल्व इम्प्लाटेंशन Trans Catheter Aortic Valve Implantation एक प्रकार की गैर शल्य प्रक्रिया है, एवं गीतांजली में इसके लिए हार्ड टीम अप्प्रोच उपलब्ध है तथा यह अन्य विकसित सेंटर्स पर उपलब्ध है | इस प्रक्रिया को बिना बेहोश किए बिना किसी रक्तस्त्राव, बिना वेंटीलेटर पर डाले एवं बिना चीरा लगाए रोगी की पैर की नस (Femoral Artery) से हृदय तक पहुंच कर सिकुड़े हुए वॉल्व को बैलून से फूलाकर नया वॉल्व प्रत्यारोपित किया जाता है। इस ऑपरेशन में टिशु वॉल्व लगाया जाता है। यह एक तरह से एंजियोप्लास्टि की तरह ही होता है।
किन रोगी के लिए है लाभदायक? डॉ. पटेल ने बताया कि जो रोगी ज्यादा उम्र एवं ओपन हार्ट सर्जरी के लिए (किडनी सम्बंधित बीमारी, मधुमेह, फेंफड़ों में खराबी इत्यादि से पीड़ित) उपयुक्त नहीं होते और जिन रोगियों में एओर्टिक वॉल्व की खराबी हो उनमें यह अत्यंत कारगर होता है, या जो लोग अपने शारीर पर चीरा नही लगवाना चाहते ऐसे रोगियों के लिए यह प्रक्रिया लाभप्रद होती है । क्योंकि यह ऑपरेशन रोगी को पूर्णतः होश में रख कर किया जाता है। इसके अतिरिक्त रोगी को दूसरे दिन ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। इसके साथ ही इस ऑपरेशन में कम जोखिम एवं जटिलताएं होती हैं, जिसके कारण रोगी जल्द स्वस्थ हो जाता है।
ज्ञात रहे दक्षिण राजस्थान में अब तक 2 सफल टावी हुए हैं, जो कि गीतांजली हॉस्पिटल द्वारा सफलतापूर्वक किये गए हैं|